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कैंब्रियनपूर्व

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कैंब्रियनपूर्व या प्राक्-कैम्ब्रियन (Pre-Cambrian) धरती के इतिहास में एक बहुत बड़ा कालखण्ड है जो वर्तमान दृश्यजीवी महाकाल से पहले आता है। इसका विस्तार लगभग 4600 मिलियन वर्ष पूर्व (Ma) जब धरती का निर्माण हुआ था से लेकर कैम्ब्रियन काल (लगभग 541.0 ± 1.0 Ma), तक है।

स्तर-शैल-विज्ञान में पूर्व-कैंब्रियन भौमिकी का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि पृथ्वी के इतिहास का दो तिहाई भाग इस कल्प में निहित है। इस कल्प के सबसे प्राचीन शैल करीब २५० करोड़ वर्ष पुराने हैं। कालांतर में हुए भूवैज्ञानिक परिक्रमणों ने, जिनके अंतर्गत अनेक ज्वालामुखी पर्वतन (Orogenesis) और पटलविरूपण का इतिहास छिपा है, इस युग की शिलाओं में इतने परिवर्तन ला दिए हैं कि उनका असली रूप पहचानना अब एक जटिल समस्या है। इसके अतिरिक्त ये शिलाएँ इतनी कावांतरित, वलित तथा भ्रंशित हो चुकी हैं कि इनका कालतत्व विभाजन एवं समतुल्यता अत्यंत दुष्कर हैं। स्तर-शैल-विज्ञान के साधारण अविनियम इस सिलसिले में लागू नहीं होते। यही कारण है कि अभी भी पूर्व कैंब्रियन शैलसमूहों का ठीक ठीक वर्गीकरण नहीं हो पाया है।

पूर्व केंब्रियन काल दो मुख्य युगों में विभाजित है : एक, जिसमें पृथ्वी के धरातल के अति प्राचीन शैलसमूह आते हैं और दूसरा, जिनमें कैंब्रियन से कुछ समय ही पहले के निक्षिप्त शैल हैं। प्रथम वर्ग को आद्यमहाकल्प (Archaezoic) और द्वितीय वर्ग को प्राग्जीवमहाकल्प (Proterozoic) कहते हैं। भारत में प्राग्जीव-महाकल्प के अंतर्गत पुराना कल्प आता है। भूवैज्ञानिक स्तंभिका के इस दो-तिहाई कल्प का वर्गीकरण उस समय में हुए ज्वालामुखीय प्रवर्तन तथा आग्नेय अंतवेंधन (igneous intrusions) की अवधियों के आधार पर किया गया है।

पूर्व कैंब्रियन काल का भूवैज्ञानिक इतिहास

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पृथ्वी का भौमिकीय विकास पूर्व कैंब्रियन कल्प के सबसे प्राचीन शैलसमूहों से आरंभ होता है। भूपटल के इन अति प्राचीन शैलसमूहों के विषय में विद्वानों का मत है कि उनमें से कुछ तो अवश्य ही धरातल पर बनी प्रथम पपड़ी (crust) के भाग हैं। भूउद्भव के प्रारंभ का समय आग्नेय उद्गारों का काल था। उस समय समस्त पृथ्वी पर बृहत् रूप में आग्नेय शिलाओं का निर्माण हुआ। इस काल में पृथ्वी जल एवं वायुमंडल रहित थी। बहुत समय पश्चात् जब धरातल का ताप कम हो गया तब समुद्र और वायुमंडल प्रथम बने। शनै: शनै: प्राचीन आग्नेय शिलाओं का अपक्षरण (erosion) और उस समय के स्थित समुद्रों में निपेक्षण हुआ। इस प्रकार प्रथम तलछटी शैलों का विकास हुआ। यही कारण है कि आद्य कल्प के अंतर्गत दो भिन्न श्रेणियों की शिलाएँ मिलती हैं। तलछटी शिलाओं का काल भारत में धारवाड युग की प्राचीन एवं मध्यम अवधि में है, यद्यपि कालांतर में हुए विभिन्न आग्नेय उद्गारों के परिणामस्वरूप धारवाड की तलछटी शिलाओं में बड़ा परिवर्तन आ गया है और उनकी पहचान भी अत्यंत कठिन सी हो गई है।

भारत में पूर्व-कैंब्रियन काल में छह वलनक प्रवर्तन के प्रमाण मिलते हैं, जो निम्न प्रकार से हैं :

भारत में हुए पूर्व केंब्रियन के ज्वालामुखी पर्वतन

ज्वालामुखीय पर्वतन -- आयु (करोड़ वर्षो में)

६. कडप्पा : ४८.५

५. देहली : ७३.५

४. सतपुड़ा : ९५.५

३. सिंहभूम-सेलम : १२५-१३०

२. पूर्वी तट : १५७-१६०

१. मैसूर : २३०-२५०

भारतीय स्तरविज्ञान में धारवाड महायुग के पश्चात् एक बृहत् विषम विन्यास (unconformity) आता हे, जो इपारक्रियन (Eparchean) विषम विन्यास के नाम से विख्यात है। इस विषम विन्यास के ऊपर की शिलाओं में कोई कायांतर नहीं हुआ है। कैंब्रियन के नीचे और इपारकियन विषम विन्यास के ऊपर शैलसमूह पुराना कल्प (Purana era) के अंतर्गत आते हैं। इस कल्प में दो युग हैं : एक प्राचीन, जो कडप्पा के और दूसरा नवीन, जो विध्य के नाम से भारतीय स्तरविज्ञान में विख्यात है। कडप्पा प्रणाली के शैल विशेषत: आंध्र राज्य के कडप्पा जिले में चदाकार दृश्यांश (crescent outcrop) के आकार में विस्तृत हैं। इसके अतिरिक्त ग्वालियर, बिजावर और कलाडगी (महाराष्ट्र) में भी इस तरह के शैल मिलते हैं।

विंध्य प्रणाली का विस्तार लगभग ४०,००० वर्गमील हैं, जो बिहार के बिहार ऑन सी नगर से लेकर राजस्थान में चित्तौड़गढ़ तक फैला है। इस प्रणाली में मुख्यत: चूना, पत्थर, बलुआ पत्थर और शैल (shale) मिलते हैं।

पूर्वकेंब्रियन की आर्थिक भूवैज्ञानिकी

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भारत की खनिज संपत्ति का अधिकांश पूर्वकैंब्रियन युग की शिलाओं में पाया जाता है। धारवाड़ प्रणाली की शिलाओं में सोना, क्रीमाइट, लोहा, ताँबा, अभ्रक, कोरंडम, ऐस्बेस्टस, कायनाइट, मैग्नेसाइट, संगमरमर आदि सभी खनिज मिलते हैं। कडप्पा शैलमाला में बैराइट, कोबाल्ट, निकल और हीरा मिलते हैं। विंध्य प्रणाली अपने चूने पत्थर के लिये विख्यात है। भारत में अनेक सीमेंट के प्रसिद्ध कारखाने इसी चूना पत्थर को काम में लाते हैं। विंध्य का बलुआ पत्थर इमारत बनाने के काम में बहुतायत से आता है।