КНИГИ НА МАРАТХИ ЯЗЫКЕ, ИМЕЮЩЕЕ ОТНОШЕНИЕ К СЛОВУ «जंत्र»
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जंत्र в следующих библиографических источниках. Книги, относящиеся к слову
जंत्र, и краткие выдержки из этих книг для получения представления о контексте использования этого слова в литературе на маратхи языке.
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Chattisagarha ki adima janajatiyam - पृष्ठ 85
किर वे लीग बोलते हैं कि जीरे-धीरे कना, पत्रों को मत दबाना नाहीं तो अगाल होगी और जंत्र आग जायेगा । अंदर को चारों तरफ से हैर लेते हैं । दो लीग दो पेह के तीच 15 शुट लच्छा जिर जाल बाल ...
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Deva granthāvalī - व्हॉल्यूम 1
७७३: इति तोर जाल अथ जंत्र जाल लक्षन दोहा इष्टदेव जानों बहे बांधे जगत सयंत्र 1 चलि न सके जासों बोयी, सो कहि" है जय ।१७८।: सर्वथा औसते रैनि करे, रवि ते ससि, बांधि दिसी दिगपाल मगावै ...
Deva, Pushpārānī Jāyasavāla, 1974
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Briat Pramanik Hindi Kosh - पृष्ठ 310
जानिजान चु० [सं० ] वह विज्ञान जिसमें जन्तुओं या प्राणियों को उत्पति, विकास स्वरूप और विभागों आदि का विवेचन होता है । (मतजि" अंत 1, [हि० जयति] जीते या चर्या पीसने-शल, । जंत्र" 1, दे० ...
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Marāṭhī granthasūcī: 1951-1962
... शक्कर नारायण नाटधिलेराब्धगा३य आ प (पप्र देपूपरा) मुबई रामाला बुक देशे, १९६२) शा के राराई| ४०० भाले दिष्यदचात्रय मराठी माटकारचना ) जंत्र व निकास तो के ता भोली तपध्या ४६९) ८०० ८०८ .
Śarada Keśava Sāṭhe, 2001
१४५१। शब्दार्थ-मतंग-हाथों । सायर-गाय-अरि-सिंह, महान नीलम गाय, जीवात्मा । हने-पारे । मनसा-मन की इच्छा, भावना । सचान-बाज पक्षी, मनोवृति । जंत्र-मंत्र-जंत्र मते उपाय है सम्बन्ध-ऊपर कहा ...
Kabir, Gaṅgāśaraṇa Śāstrī, 1989
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Hariyāṇā kā itihāsa: 1000-1803 - पृष्ठ 184
आबय समय में यहाँ विविध प्रकार के जंत्र-मंत्र, जादू, टोने-टोटके भी, खूब प्रचलित थे । बहुत से रोग 'जंत्र-मंत्र' या 'टोने' से दूर कर दिए जाते थे । जानों के ऊपर जब भेषज असफल हो जाती थी तब ...
Kripal Chandra Yadav, 1981
जंत्र, भूप-प्रेत, शकुन-अपशकुन, उयोतिष, स्वप्न आदि में विश्वास इसी प्रकार के लोक-विश्वास हैं । सोफिया बनें ने इनका विभाजन निम्नलिखित प्रकार से किया है : (अ) प्रकृति के चेतन ...
Ghanshyam Prasad Shalabha, Chandra Mohan Hada, Onkarnath Dinkar, 1972
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Madhyakālīna pramukha santoṃ meṃ aprastuta yojanā
... कबीर जंत्र न बम्वई दूति गए सब तार है जंत्र विचारा क्या कहै चले बजावणहार ||छ है साखी में संसार के हेतु चक्की की उपमा सर्वथा मौलिक है | यह साखी कष्टदायक संसार का स्पष्ट चित्र खोचने ...
9
Madhyayugina Krshnakavya mem Samajika Jivana ki Abhivyakti
जंत्र-मंत्र था जानत ही तुम, सूर स्याम बनवाने । ब-वहीं, वही, प० सं० ७५५ ८ मैया एक मंत्र मोहि आवै । विषहर खाइ मरै जो कोऊ, मो सौ मरन न पावै । नाटकीय की से कुछ पढ़ते हैं, उसके अंगों का स्पर्श.
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Ranachūdhana: Bundelakhanḍī gīta
भोग तो विषय झलकत दूरइ से, ई में भूरी भूरी, मन मानत नाइयों केउत है, खालिओ होय धतृरो, बडी भयानक लगत जंत्र जो, चोरों कारो-कारो, गोपर को भोजन जी केउत, चलो अबा, प-कारो, भीतर बारी बजत ...
Raghunāthasiṃha Madhupa, 1979