КНИГИ НА МАРАТХИ ЯЗЫКЕ, ИМЕЮЩЕЕ ОТНОШЕНИЕ К СЛОВУ «आंतर»
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आंतर." काय-मया संहितीमणाज्ञाबतचा हा सवति व्यापक प्रयत्न होय, औतररपय कायदा हा दि" सार्वम१म देकांसाठी असल्याने दंडशवतीख्या बलम त्याची कार्यवाही होऊ शकत नाही.
Rājendra Vhorā, Suhāsa Paḷaśīkara, 1987
2
Navin Bhartiy Damdar Netrutva Prabhavi Sarakshan / ...
अग्री पाच हे भारताचे सर्वात पहले अण्वस्त्रवाहू आंतर खंडीय क्षेपणास्त्र आहे.(आयसीबीएम) यमुळे भारत ने अतिशय महत्वचा पछा क्षेपणास्त्र युद्धमध्ये गाठलेला आहे. रशिया, अमेरिका ...
3
Jñānadevīcī gauravagāthā
आंतर साधन-या योगाने देवा-जाशी एकरूपता सधिल तेच्छा आसरसाधनांचेदेखींल काम संपती साधक हाच साध्य बल्ली- भबतीचे अंतिम साध्य खरे पाहिले तर हेच अहे या साध्याचा विचार ...
4
Marāṭhīcyā asmitecā śodha
त्यामुले तो भारत" व आंतर-य विश्वस्त मागे पटेल ही भीती बालगश्याचे कारण नाही. आज इन्नायल, जपान, जर्मनी, फान्म वगैरे देशातही विद्यार्थी आपले शिक्षण आप-ल्या देशाख्या भाषेतून ...
Vishnu Bhikaji Kolte, 1992
5
Ḍô. Kolate gaurava grantha: sãśodhanātmaka va vāṅmayīna ...
... त्यडिया शैलीचे पैलू, भाषेचे सौष्ठव, शतांची सर अशी कित्येक तले त्याचया काध्यातच अंतरित असस्थाकारणाने वना आंतर संशोधनाचीच अपेक्षा असके संशोधन-लया या दोच्छी प्रक्रिया ...
Vishnu Bhikaji Kolte, Madhukara Āṣhṭīkara, 1969
6
Jñāna vijñāna viveka, svarūpa stithi kī ora: ...
Upanishad-Gītā ādhārita Mām̐, Pushpā Ānanda, Suśīla Dhīmāna, Viveka Kapūra. जो मैं करे अरे आंतर में, जो मन सोचे रे आंतर में है स्कूल तो होता जाता है, तू कर्म करे रे आंतर में ।।२३।। निजी अतर में अरे ...
Mām̐, Pushpā Ānanda, Suśīla Dhīmāna, 1972
7
Upanishad rahasya - व्हॉल्यूम 1 - पृष्ठ 177
इस अनुवाक में शारीर आत्मा को अन्नमय से अन्य और आंतर, उससे अन्य और आंतर प्राणमय आत्मा को, उससे अन्य और आंतर मनोमय आत्मा को तथा उससे अन्य और आंतर विज्ञानमय आत्मा को एवं ...
Candrabalī Tripāṭhī, 1986
8
Kamaleśvara kā kathāsāhitya
अभिव्यक्त किया गया है, तो प्यास का दरिया' में व्यक्ति जीवन के आंतर यथार्थ की अभिव्यक्ति हुई है । पुराने दौर की कहानी में शाश्वत-मू-यों की बात की गयी थी । उनकी स्थापना का आग्रह ...
9
Bhāratīya saundaryaśāstra kā tāttvika vivecana evaṃ lalita ...
कला कोई बाह्य वस्तु नहीं है, वरन् यह आध्यात्मिक है और आंतर सहजज्ञान की रूपात्मक और सर्जनात्मक शक्ति के समरूप है । वैषयिक अभिव्यक्ति केवल आकस्मिक परिणति है । बुद्धथोष ने इस ...
10
Bhoolane Ke Viruddha: - पृष्ठ 186
स्वनियामकता ही धर्म का मूल रूप है जिसका अपरिभाषित आंतर-ज्ञान और परिभाषित आब ज्ञान दोनों ही सदा ही अपनी पूर्णता को खोजते हुए दो पक्ष बने तले हैं । है है यदि इस प्रसंग में ...
Ramesh Chandra Shah, 1990