हिन्दी मध्ये लोकत्रय म्हणजे काय?
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हिन्दी शब्दकोशातील लोकत्रय व्याख्या
फिलॉसॉफिकल नाम एन [0] तीन जगातील सामूहिक त्रिलोक [ते 0] लोकत्रय संज्ञा पुं० [सं०]
तीनों लोकों की समष्टि । त्रिलोक [को०] ।
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«लोकत्रय» संबंधित हिन्दी पुस्तके
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Vājasaneyi-mādhyandina śuklayajurveda-saṃhitā: ... - Volume 1
यजुमीत्र के द्वारा किये हुए हरण का लोकत्रय से साम्य बताते हैं-पृधिठयादि तीन लोक प्रत्यक्ष ही हैं । और त्रिर्यजुहरिण भी प्रत्यक्ष हो है, क्योंकि अनु१हियार्थ का प्रतिपादक है ।
Hariharānandasarasvatī (Swami.), Gajānanaśāstrī Musalagām̐vakara, Vrajavallabha Dvivedī, 1986
अयं वे लोको गाहंपत्य:" [ शतपथ ७/१/१/६ ] 'थवत्सरोपुरिन:" शतपथ ९/३/३/ १ २ ] इत्यादि श्रुतियों में गाहंपत्य आहवनीय और दक्षिणाग्नि को लोकत्रय रूप बतलाया गया है । इससे सिध्द है कि जैसे प्रकृति ...
Śivadatta Śarmā Caturvedī, 1992
3
Śrīmadbhagavadgītā ke Śāṅkara bhāshya kā samālocanātmaka ...
ऐसे तीनों के समुदाय का नाम लोकत्रय है : इस अति के अनुसार प्रमाण से समझ में आने वाले जड़, जड़ से संसर्ग युक्त चेतन और मुस्तात्मा-इन तीनों का नाम लोकत्रय है है जो इन तीनों को ...
लोक-त्रय यथा दर्शन, कना-परि, इतिहास, साहित्य उनके लिए ममतरन हैं । शताब्दी वर्ष होने के काया परात आ में उनके विशाल पना-संसार की प्रतिनिधि स्वनाओं का संकलन किया पता हैं जिसमें ...
5
Vīramitrodayaḥ - Volume 21, Issues 1-2
... नभट्वेस्तु से ।। इति मच्चाप्रेण मूलमहत्रयुतेन पाधिर्च त' तुष्ट्रइइट्ठयाह्यरेंत्तममदृयकानेष्ठेपु व्रह्माव'३८णु।श"वान् सत्वरजस्तमामृस" वेदत्रय" लोकत्रय" चाइट्ठवाहा वनमालायां ...
Mitramiśra, Nityānanda Panta, Viṣṇuprasāda Śarmā, 1936
6
Advaitatattvamīmāṃsā: Sureśvarācāryakr̥ta ...
नै, सि०, ४-३६ युष्यदमद्विभालयादर्थवदिवं बच: । यतोपुनभिन वाकी न्यादुबधिरेष्टिव गायनम, ।। नै० सि०, ४म्१ गो हि यत्र विरक्त: स्था-न्यासी तल प्रवर्तते । लोकत्रय विस्कात्वान्मुमुक्षु: ...
7
Veda-vijñāna evaṃ anya nibandha
मध्य का यमन एक ओर प्राण से बद्ध है तो दूसरी ओर अपान से बद्ध है है प्राकृतिक लोकत्रय में पृधिबीनोक में आ-तय-मग्रह-सता रहती है । अन्तरिक्ष में उपांशुसवनग्रह की सता रहती है एवं शु में ...
8
Maharṣikulavaibhavam - Volume 1
प्राणगभिता वागियमेक्र्षइ सती लोकत्रय-पशुमेदषचतुओं रूइभूयच्चे वाजं प्रसूते है . . . . यजुधि है अप्रपसव/ शुम्भ बार आत्मनि लोके मत्यों अमुने उक्थे उनमे सामनि अक यनोमयप्राणगमिता ...
Madhusūdana Ojhā, Giridhar Sharma Chaturvedi, 1994
द)., उग्रम् (न ग्रथ० जिमि, एकल (-वि० दुर अ-उत्)., तव (१- ये): इवार (१-१०)०, छोदुलस2 उ० प्रथ० जिमि, एन अ-लम लोकत्रय, लोकानाम्-मयम् औ" (नोक २. प है न० जिय ची-पद); प्रअधितए (ना० प्रप्र० वित्ति, एक" कै-बल ...
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Rāma-kathā: bhakti aura darśana - Page 232
उत्तम: पुख्यात्वन्य: परमात्येत्युदाह्रत: 1 यो लोकत्रय माविश्य विभत्र्यव्यय ईश्वर: 11 -गीता 15117 -8. तत्र निरतिशय" सर्वज्ञ बीजन् 1 चीमा से परिच्छिन्न नहीं होते हैं ।३ भागवत में कहा.
Viśvambharadayāla Avasthī, 1988