«उजेर» 관련 힌디어 책
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Mahātmā Banādāsa: jīvana aura sāhitya
बनादास ने उनके अलम में 'प-प' और "अयभत्र्सना' का अत्यन्त मर्मस्पर्शी भावचित्र उपस्थित किया है--पुरवासिन की प्रीति लखि भायप नान केर है लंकापति कपिपति भये दीपक भवन उजेर ।२ दीपक भवन ...
Bhagavatī Prasāda Siṃha, 1976
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Rudraprayāga meṃ Jalagāṃva kī choriyāṃ - Page 25
पिन यब तू ई नास वाय के बायलर रोमनी के हिल क जे सता है देम होम के मावा क रात में गोतानो जाति थई नई यदा होम देख आ वर उजेर क मरि सूत ना यले घूम वन बता के जैव सोबई बायलर क रह सोना से भी ...
Kamalākānta Dvivedī, 1991
रासी के अनेक स्थलों पर समुद्र के प्रसंग में सात संख्या का कथन है । उदाहरणार्थप्रताप. साम भात सरीस है भी प्रति आह नमम सीस है ति सोहत मानुसे सं सत सेर है ।केधत् सत सिंधु सुरत उजेर ।१ ...
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Kāsimaśāha kr̥ta Haṃsa javāhira: eka alocanātmaka adhyayana
ध्वनि के कई कोदोपरोद किये गये हैं : यहां अलंकार ध्वनि का उदाहरण प्रस्तुत है-सूरज शशि उजेर जगमल संस ललाट केरु उछाले ।4 इस प्रकार हम देखते हैं कि कासिमशाह की भाषा अभिधा, लक्षणा और ...
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Sūphī-kāvya kā dārśanika vivecana: 'Jāyasī ke paravarttī ... - Page 278
जवाहिर के इसी परम ज्योति स्वरूप ललाट के वर्णन में शब्द ने इष्ट (ब्रह्म) के दर्शन किये हैं-सूरज शशि उजेर जग माही । लैस ललाट केर परछाही । ऐस ललाट जो दई संवारा । सूर लजान कहा शशि तारा ।
Bhāla Candra Tivārī, 1984
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Saṃskr̥ta kā aitihāsika evaṃ saṃracanātmaka paricaya - Page 38
... हंगेरियन अब यज : अवे० सतत्; सं० असुर 'स्वामी' : अवे० अपार, मशीन रोम अजल अजनार; सं० बजर 'इन्द्र का अम : अवे० बजा 'गदा' : फिनिश अब बसर 'हथ': महिन-विप्र, उजेर; सं० वराह 'सुअर' : अवे० वरा-, फिनिश-गोरस, ...
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Pān̐ca pora kī bām̐surī - Page 29
मधु रा बिखराये सुरभि पल के वसन्त । पवन करे अठखेलियों" सकूवे संत-मखत । । हैंसे पृतमी चन्दिका चारिउ वतन उजेर । वह, काला करके छुपा जाने का, अंधेर । । दिवस लगे मधुम. के मुसकाये बधितुराज ।
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Sudhiyoṃ ke amalatāsa - Page 90
उजले तन मन वाली मद भरे नयन वाली भीगते सपन वाली यया जाजाली सुबह सुबह तुत्लाई बोली में टेर गई, अंधियारे में जैसे दीपक उजेर गई 1. रूप के नगर वाली पीत की डगर वाली गीत सी नजर वाली ...
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Hindī kāvya meṃ vātsalya rasa
... अर स्याम अभिराम भैया दोऊ, ललित लरिकरन लिय संग टोले : है के भवन प्रति भवन चलि चोरहीं दूध दधि, रतन अन बदन तन उजेर है खाता लपटाता औकात फिरि हैंसि भजता 1 चकूत (ई अनी निज भवनहेरका ।
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Avadhī ke ādhunika pramukha prabandha kāvya
जरावइच देरी कल उजेर, बनाम बाजा गुठलिन केर । ब्रह्मपुरी से सुनीति का निष्कासन हो गया । उनकी जो कुटी सरस्वती नदी के पुलिन पर बनाई गई, उसमें ग्राम्य जीवन की आँकी ही मुख्य है-बहु ...