«उडु» 관련 힌디어 책
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Shree Haricharitramrut Sagar Hindi Part 01: Swaminarayan Book
बर्नी निबारन यहु विध कोना, तोहु असुर को की हि लोना ।।३५।। घेरी लिये जाई चहुं, कोरा, असुर अधर्मी महा चीरा । । उडु" उडु" लियों अब बारा, देने अवि है सकापारा ।।३६।। दोहा : सहस सहस असुर हो, जम ...
Swaminarayan Saint Sadguru Shree Adharanandswami, 2011
दाचायण्योsश्विनीत्यादि तारा अश्वयुगश्विनी । २१ ॥ राधा विशाखा पुष्ये तु सिध्यतिष्यौ श्रविष्ठया । तारका (उक्त विग्रहे ण्वुलि, निर्देशादित्वाभाव:) उडु (उना शंकरेण डीयते इति, ...
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Nalodaya: Sanscritum carmen Calidaso adscriptum - Page 36
तारका 'प्य उडु व्त्रा स्त्रियाम इत्य श्रमर: ॥ ५०॥ कत्र थे 'ति ॥ श्रथा 'न्ान्तरम. श्रम्बुरान्त उद ध: सकाशात. उयग्रत: उद्धत: स चन्ट्रेा व्यराज्ञात प्रफुण्युभ ॥ एवम. अत्राकाशं राज्ञतम्पू.
Ravideva, Kālidāsa, 1830
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PUNYA BHUMI BHARAT: - Page 83
इसका शाब्दिक अर्थ है (उडु नक्षत्र, पासपालक) नक्षत्रों का पालक अर्थात् रूप में दर्शन दिये। यहाँ प्रसिद्ध एवं भव्य श्री कृष्ण हिन्दू धर्म तथा संस्कृति की सुरक्षा और सबंधन विजयनगर ...
Jugal Kishor Sharma, 2013
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हिन्दी: eBook - Page 288
नक्षत्र-तारक, उडु, खेचर, तारा। नरक-यमालय, यमपुर, निरथ, नक, रौख। ------- ----- प्रपात-झरना, सोता, निझर। प्रभा-आभा, द्युति, दीप्ति, ज्योति, प्रकाश, चमक। प्रीति-अनुराग, प्रेम, स्नेह। पाला-हिम ...
Dr. Triloki Nath Srivastava, 2015
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Vachaspatya, a comprehensive Sanscrit Dictionary: In 10 ...
उत्तरादिमिखावां तदुविरोधिगवां दक्षिणखां दिशि, रखी ॥ उत्तमंभित्र चपलट त्रि ॥ न उतरवि चबलि उडु-बच्च-त-। खिरे नि- ॥ अनुक्तान विन न उलानः विरोधे बात- । उत्तानवी अवताने अवाड्वे ॥
Tārānātha Tarkavāchaspati, 1873
माझे प्रशिक्षकाशी खटके उडु लागले.आता तो माझी गैरहजेरी लिहुन ठेवू लागला. मला शिक्षा करू लागला. दिवसेंदिवस त्या शिक्षा सहन करणयापलकडे जाऊ लागल्या. मी कसंबसं ते कमांडो ...
रे उडु, क्या जलते प्राण विकल ! क्या नीरव, नीरव नयन सजल ! जीवन निसंग रे व्यर्थ विफल ! एकाकीपन का अधिकार, दुस्सह है इसका मूक भार , इसके विषाद कारे न पार: ! चिर अविचल पर तारक अमीरों जानता ...
Sumitrānandana Panta, 1963
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Catushṭayetara chāyāvādī kavi aura unkā kāvya
... की उक्ति में इसी प्रकार का संकेत हैजिसकी इच्छा का प्रसार, भूतल, पाताल, गगन हैं, दौड़ रहे नभ में अनन्त, कन्दुक जिसकी लीला के ॥ अगणित सविता-सोम, अपरिमित ग्रह, उडु-मण्डल बनकर।
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Sarvatobhadra vidhāna: br̥hat tīna loka vidhāna
उडु पुनर्वसू के छह तारा, तोरण समान आकार कहा । छयासठ सौ बहत्तर सब तारे, चमकें विमान ये अधर अहा ।इना ५ । ॐ यहीं परिवारतारासभानर्वसुनक्षत्रविमानस्थितसंख्यातीतजिनालयजिनबिबेभ्य: ...
Jñānamatī (Āryikā), Di. Jaina Triloka Śodha Saṃsthāna, 1988