«अपृक्त»に関連するヒンディー語の本
以下の図書目録から
अपृक्तの使いかたを見つけましょう。
अपृक्तに関する本とヒンディー語文献で使われた文脈を提供するための簡単な抜粋文。
1
Saṃskr̥tapaṭhanapāṭhana kī anubhūta saralatama vidhi: vinā ...
अतः पहले अपृक्त एकाल्प्रत्ययः (१॥२४१) (अपृक्त: १। १॥। एकाल् ११॥ प्रत्ययः ११॥) सूत्र अपृक्त संज्ञा करता है, सो एक अल् रूप प्रत्यय की अपृक्त संज्ञा होती है। इससे स् की अपृक्त संज्ञा (नाम) ...
Brahmadatta Jijñāsu, 1968
2
Laghu-Siddhānta-kaumudī Bhaimīvyākhyā - Volume 1
अबी-हलन्त अज से अथवा दीर्घ 'की' या 'आप जिस के अन्त में हो उस अङ्ग से परे 'धु, ति, सि' प्रत्ययों के अपृक्त हत का लोप होता है । व्याख्या-मन्यास: ।५।३: दीर्धात् ।५२१२ दृ-ति-सि ।१। (. अमृक्तन् ...
Bhīmasena Śāstrī, Varadarāja, 2005
3
Vediki Prakriya Shodhpurna Alochanatamak Vistrit Hindi Vyakhya
Damodar Mehto. सोप तथा अपृक्त हम अत' का 'ह-ममयक ' (६--१--६८) से लीप-हम, प्यारी के योग में अव का अभाव, 'खरवसानयोविसर्जनीय:' से विसर्ग होकर-हं-' रूप सिद्ध होता है 1 (नोक में 'अवाक' रूप होता है ।
4
Saṃskṛtapaṭhanapāṭhana kī anubhūta saralatama vidhi - Volume 1
अल पहिले अपृक्त एका-प्रत्यय: ( ११२।४१ ) (अश्व: १। १।। एगर १।१।: प्रत्यय १।१गोसूत्रअपूक्त संज्ञाकरताहै, सो एक अत रूप प्रत्यय की अपृक्त संज्ञा हाती है । इससे सू की अपृक्त संज्ञा (नाम) हो कर ...
Brahmadatta Jijnasu, 1968
5
Śuklayajurvedīya Śikṣāgranthoṃ kā tulanātmaka adhyayana
उबार का दीर्घभाव (1 ) सु बाद में होने पर अपृक्त उकार संहिता में दर हो जाता है है है' जैसे-म यु ण: (वा० सं० 1 1.42) : (2) अवसाद पुरुष में उमर हो गया है नि:' जैसे---.: ( वाद्य सोम 12/91 ) स्वर सांसे के ...
Viśvanātha Rāma Varmā, 1996
6
Laghusiddhāntakaumudī: navīna śikshana-paddhati para ...
अब रोजा-हर-मम्य:--' पुत्र से अपृक्त सकार का (सेप करने पर १पुमन् सू' रूपबनता हैं है पुन: '२०-संनोगान्तरयलोपहाँ से संयोगान्त सकार का लोप होकर (मर रूप बनेगा । इस अवस्था में '३४२-सान्तमहल:--" ...
Varadarāja, Pāṇini, Bhaṭṭojī Dīkṣita, 1977
7
Saṃskr̥ta ke Bauddha vaiyākaraṇa
इस प्रकरणसात्कर्य के कारण ही '"अपृक्त एकल प्रत्यय:" (१। २१४१ ) को कैयट तो परिभाषा, मानते हैं, जबकी भट्टनागेश इसे संज्ञासूत्र ही सिंद्धर करते हैं--"कैयट: अपृक्त एकात्० सूत्र परिभाषासुवं ...
Jānakīprasāda Dvivedī, 1987
तत्रानेकपदघटितसूले प्रायेण पद-मविचार एव, न तु मात्रालाघवविचार इति 'ऊकालोपुचु' 'अपृक्त एकातृ' इत्यादिसूरियु भय ध्वनितमृ, । तत्र हि सूरिफग्रहणालग्रहणगोविशेषविचारे संज्ञायां ...
Nāgeśabhaṭṭa, Parṇadatta Siṃha, 1987
9
Vyākaranacandrodava - Volume 5
उनका कहना है कि उतो वृडिर्णहि हलि (७।३।८९) सूत्र से 'हलि' की अनुवृत्ति आने से हणादि प्रत्यय परे गुण की प्राप्ति होने पर अपृक्त ग्रहण इसलिये किया है कि आ प्यार परे होने पर गुण हो, ...
ईडागम न होने पर कुछ हलन्त धातुओं से परे और कतिपय अन्य रूपों में प० के अपृक्त प्रत्यय त् तथा सू का लोप माना जाता है, परन्तु ऐसे रूपों के विषय में व्याख्यान-भेद है, जिस का विस्तृत ...