«घलुआ» এর সঙ্গে সম্পর্কিত হিন্দি বই
নিম্নলিখিত গ্রন্থপঞ্জী নির্বাচনে
घलुआ শব্দটির ব্যবহার খুঁজুন। হিন্দি সাহিত্যে
घलुआ শব্দের ব্যবহারের প্রসঙ্গ সম্পর্কিত বই এবং তার থেকে সংক্ষিপ্তসার।
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Merī śreshṭha vyaṅgya racanāyeṃ
जहां तक मैं समझ पाया हूं, घलुआ ब्रहा का ही एक रूप है । उसकी परिभाषा भी कुछ वैसी ही कठिन है । तथाधि जिस प्रकार उसको ब्रह्मानंद सहोदर कहा गया है, उसी प्रकार घलुए को आए का सहोदर कह ...
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Veda va vijñāna: r̥shikula aura vaijñānika prayogaśālā ke ...
महाकाश और दहराकाश में परस्पर खुब मेल हैं, जो भेद हैं वे व्यावहारिक हैं-यह तथ्य दिखाकर श्रुति ने हमारे हाथ में जो घलुआ दिया हैं. उसका मूल्य बीसवीं सदी के वैज्ञानिक बाजार में भी ...
Pratyagatmananda Saraswati (Swami.), 1992
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Arvind Sahaj Samantar Kosh: - Page 304
... मालिश घषित बरस के (रिसना घलुआ से सुभाव पम प्राह घसियारा धरि-ना टा धि२स्टना धरिस्यारा स पपुदा, घरिप्यारा/धरिन्यारिल म धरि-यारा/मयारी, बाप, मपुरा, आज गोरे, ०धश्चाडा, ०ध्यागाठ, ...
Arvind Kumar , Kusum Kumar, 2006
... कहीं कोई गाय किसी की होकरी से सूत्री के पले घसीटती नजर आ रही है, कहीं कोई घलुआ मजिने में आध घन्टा अवि-कवि कर रहा है; कहीं बक-जिसे का तराल-डार मारते वक्त बरबस टूट रहा हैं और उली ...
Suraj Prasad Khattry, 1959
Manoja Sonakara. यादें ढोलक पर लगी, मीठी तो मीठी ताल ।ई टेवसएक बेनाम थी, अलग-अलग थे घाट । यादें संध्या से जुड़, करते पंडित पाठ ।। यादें सौदागर हुई, घलुआ देती जायं । जिससेमैंभागा फिखं ...
... रूख ( म ), वयन ( वचन ) : अवधी के शम भी प्राय: आए हैं-वालि ( घलुआ ), संजय, बारि ( समूह या सेना ), गोल, खपुआ ( भगोड़ेआ ), से ( वे है, अकनि ( आकल-सु--, सुनकर ), संधान ( अचार ), पंवार) ( काते ), कलन ( बछड़े ) ...
Viśvanāthaprasāda Miśra, 1965
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Kathā-krama: Svādhīnatā ke bāda kī kahāniyām̐ - Page 532
घलुआ को आदेश हुआ कि कुम्हार के यहाँ से दो छोटो-छोटी हंडिया माँग लाये । पानी लाना कलुआ के जिम्मे रहा है स्वयं लोकनाथ ने एक थाली में वहीं आधा सेर चावल लाकर एक तरफ रख दिया और ...
रुगौना : सं० पु० घलुआ, घाल । रुझान : सं० स्वी० एक प्रकार की छोटी चिडिया जिसकी पीठ काली, छाती सफेद और चोंच लम्बी होती है । रुदुवा : सं० पु० एक प्रकार का धान जो अगहन में तैयार होता है ।
Chandra Prakash Tyagi, 1977
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Vyāvahārika śailīvijñāna - Page 114
... हैं घोखना (कुटज 38) हैं घलुआ (कबीर 222) है लहालीट (पुन 16) म टिटकारी (पुन 16)-0 लोकप्रचलित शम, दूसरी ओर कुजाटिकाउछन्न (कल्प 17) है प्रागोदित (अशोक 161 ), अनवधीन (आलोक 26), अहेतुक (कबीर ...
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Kabīra kā sāmājika darśana
हिन्दी ही नहीं पूरे विश्व साहित्य में कोई कम घलुआ नहीं है । ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि कबीर एक तरफ चिन्तन कर रहे थे और दूसरी तरफ कविता बनती जता रहीं थी । वस्तुत: चिन्तन को काव्य ...