खंखड़在印地语中的意思是什么?
在印地语 词典里खंखड़的定义
鸭子v / s 0 由于干燥 收紧。 没精打采的。 伤元气。 憔悴。 六十五年 他并不知道Bhola从内部如此激烈 它是--Godan,第6页。 खंखड़ वि० [सं० खक्खठ या० अनु]
(पदार्थ) सूखने के कारण
कड़ा । मुरझाया हुआ । दुर्बल । क्षीण । उ०—पचास बरस
का खंखड़ भोला भीतर से कितना स्निग्ध है, यह वह न जानता
था ।—गोदान, पृ० ६ ।
与 «खंखड़»相关的印地语书籍
在以下的参考文献中发现
खंखड़的用法。与
खंखड़相关的书籍以及同一来源的简短摘要提供其在 印地语文献中的使用情境。
1
Reṇu racanāvalī - Volume 1 - Page 222
पिछले साल भी खंखड़ ने पाशान के साथ ऐसी ही चालबाजी की थी । "लेकिन बाहर-भीतर जाने के लिए-याने लपका, दिसा-टट्टी-महो नीचे ही जाना होगा ।" खंखड़ ने अपीली "लेकिन' लगाने की चेष्ठा ...
Phaṇīśvaranātha Reṇu, Bhārata Yāyāvara, 1995
2
Hindī nibandha ke āloka śikhara - Page 193
हैं, "यह भी क्या कि दस दिन फूले, फिर खंखड़-के-खंखड़-दिन दस फूला फूलिकै खंखड़ भया पलास ।" ऊपर के अवतरण. की व्यर्थता स्पष्ट है । संस्कृत उद्धरणों को हिन्दी-अनुवाद के साथ देने से लगता ...
3
होरी (Hindi Sahitya): Hori(Hindi Drama)
पचास वर्ष का खंखड़ है। होरी उसके पास जाता है।] होरी–राम राम भोला भाई। कहो, क्या रंगढंग है? सुना है, अब की मेले से नयी गायें लाये हो। भोला–(रुखाई से) हाँ,दो बिछये और दोगायें लाया ...
प्रेमचन्द, Premchand, 2012
कबीरदास को इस तरह पन्द्रह दिन के लिए लहक उठना पसन्द नहीं था : यह भी क्या कि दस दिन फूले और फिर खंखड़-के-खखिड़ --'दिन दस फूला फूलिके खदेड़ भया पलास' ! ऐसे दुमदारों से तो लर भले है फूल ...
Hazari Prasad Dwiwedi, 2007
खेतेां में धान के पौधे सूखकर खंखड़ हो गए, िजसके दोएक बीघे मेंधान हुआ भी तो राजा ने अपनी सेना के िलए उसे खरीद िलया, जनता भोजन पा नसकी। पहले एक संध्या को उपवास हुआ, िफरएक समय भी ...
बंकिम चन्द्र , Bankim Chandra, 2014
6
पुष्पहार (Hindi Sahitya): Pushphaar (Hindi Stories)
हाथ पकड़कर दोनों िजठािनयां मुझे गहरे जल में खींच ले गयी थीं, िमट्टी रेत से सनी वह पुरानी खंखड़ नाव और फूलों से सजा कश◌्मीर का वह शि◌कारा, अन्तर था? अन्तर नहीं था, पुरुष की ...
मेरा नाम खंखड़ ओझा है । आप नाम लेकर ही बुलाता । नौभांछोश वासन ? अभी कहाँ ? य२टिहार में यानी बदलने के बाद, रात में एक बजे नौगशिया ।१' नीगडिया स्टेशन से पाँच-सत कोस दूर वि२सी गाँव ...
Phanishwarnath Renu, 2004
8
आनन्दमठ (Hindi Novel): Aanandmath (Hindi Novel)
खेतों में धान के पौधे सूखकर खंखड़ हो गए। िजसके दोएक बीघे मेंधान हुआ भी तो राजाने अपनी सेना केिलए उसे खरीद िलया, जनता भोजन पा न सकी। पहले एक संध्या को उपवास हुआ, िफर एक समयभी ...
बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय, Bankim Chandra Chattopadhyay, 2012
9
Sampooran Kahaniyan : Suryakant Tripathi Nirala - Page 25
कबीरदास को इस तरह पन्द्रह दिन के लिए लहक उठना पसन्द नहीं था । यह भी क्या कि दस दिन फूले और फिर संख-ड़-के-खोप-वादन दस फूला फूलिके खंखड़ भया पलास' ! ऐसे दुमजारों से तो लई भले । फूल है ...
Suryakant Tripathi Nirala, 2008
हाथ पकड़कर दोनों जिठानियां मुझे गहरे जल में खींच ले गयी थी, मिट्टी रेत से सनी वह पुरानी खंखड़ नाव और फूलों से सजा कश्मीर का वह शिकार, अन्तर था ? अन्तर नहीं था, पुरुष की लोलुप ...