与 «अंशस्वर»相关的印地语书籍
在以下的参考文献中发现
अंशस्वर的用法。与
अंशस्वर相关的书籍以及同一来源的简短摘要提供其在 印地语文献中的使用情境。
1
Śrībharatamunipraṇītam sacitraṃ Nāṭyaśāstram: "Pradīpa" ...
( हैं ) 'अद-अमित सर्थजासौनार्मशबसू२ परिवतार्तता: । यत्प्रवृसौ मबम सीदुर्शत आहुविकहिपत: 1: ७3 1: अंश स्वर ही समता जातियों के यहाँ स्वर होते है तो प्रवृति अर्थात गायनवादन की प्रयोग.
Bharata Muni, Bābūlāla Śukla, 1985
2
Kālidāsa-sāhitya evaṃ saṅgīta-kalā: music (vocal and ...
शुद्धजातियों में यह तथा अंशस्वर निश्चित रूप से एक ही रहता है तथा जाति का न्यास भी उसी स्वर पर किया जाता है : विकृत जातियों में अनेक अंशस्वरों में से एक ग्रह स्वर होता है किन्तु ...
3
Bhāratīya saṅgīta kā itihāsa
जैसा ऊपर निरूपित किया जा चुका है, भरतकालीन जातियों में एक से अधिक स्वरों का प्रयोग जातियों के अंशस्वरों के रूप में किया जाता रहा है । इनमें से जिस विशिष्ट अंश स्वर से जाति का ...
Śaraccandra Śrīdhara Prāñjape, 1969
4
Bhāratīya saṅgīta kā itihāsa
अब यह जातियों या अंशस्वर की ठी के वय कर रहे है । उन्होंने कहा है-नात उई प्रवक्षशमि तारामसालत्पनर अर्थात इसके (गाम मैं जातियों के वर्गीकरण) (मगे जातियों का अंश की दृष्टि है बन अनी ...
Jayadeva Siṃha, Premalatā Śarmā, 1994
के जो दस लक्षण हमने ऊपर देखे, उनका विश्लेषण करने पर दो मुख्य बाते ध्यान में आती हैं-एक तो यह कि 'अंश' स्वर राग की रंजकता का मुख्य आधार होता है और दूसरे यह कि अश का बहुल प्रयोग होता ...
Lakshmīnārāyaṇa Garga, 1978
'ग्रब--अहास सर्वजातीनार्मशयसू२ परिकीसता: । ष य-यन भयेद्वाहीं सी७त्तों आहुधिकहिपत: 1: ७3 1: अंश स्वर ही समस्त जातियों के 'ग्रह' स्वर होते है । प्रवृति अर्थात गायनवादन की प्रयोग.
Bharata Muni, Babu Lai Shukia, 1985
(एक अंशस्वर तीन जातियों में होता है ऐसी तीन जातियों का आण' ) एकस्वर, (दो दो अंश स्वर तीन जातियों में होते हैं, उनका 'गण' ) द्विस्वर, (तीन तीन अंश स्वरोंवाली तीन जातियों का गया ...
Pārśvadeva, Br̥haspati (Ācārya), 1977
8
Bharatiya natya sastra tatha Hindi-natya-vidhana : Study ...
ग्रह स्वर सब जातियों के अंश स्वर के समान होते हैं : जिस अंश स्वर से गान का प्रारम्भ हो, यह अर्थात प्रारम्भ होने से वह अंश स्वर यह कहलाता है " २० अंश स्वर उसे कहते हैं, जिसमें राग की ...
9
Paṇḍita Vishṇu Digambara Paluskara Smṛti Grantha
पचमी जाति में ध और नि दो स्वर लिखे जा सकते थे । मतंग के वणोंनानुसार कई जगह ऐसा माना गया मालूम होता है कि अंशस्वर से आरोह का ब----------. तारगति समझा जाय । नंदयंती जाति में पंचम अंश ...
Vinayacandra Maudgalya, 1974
10
Svara aura rāgoṃ ke vikāsa meṃ vādyoṃ kā yogadāna
अगर जित को स्थायी या अंश स्वर बनाना है तो विकारी 'प्रत' में मिलायी गई तथा यम से आगे जहाँ धैवत की प्राप्ति होती है, वहाँ से अ-मनिपात राग का प्रारम्भ किया । किन्तु क्या इससे ...