与 «अंगधारी»相关的印地语书籍
在以下的参考文献中发现
अंगधारी的用法。与
अंगधारी相关的书籍以及同一来源的简短摘要提供其在 印地语文献中的使用情境。
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Jainendra siddhanta kosa: Sampādaka Jinendra Varṇī - Volume 1
र ऐर ५भूश्चिभीट ६ विनयदत्त आदि अन्य हैं आचायोंका देर सुभद्रा ) था ] हैं पैरा अंगधारी है ४है४७४ जिन गुलेनंनोंहोमारपगु दृ यशोभद्ध अभय है देई है है है अंगधारी| रार ४जाहै४लोर सं ...
इसके पश्चात् ( २३ वर्ष में श्री नक्षत्र, श्री जयपाल, श्री पांडव श्री भरम, श्री कंस ये पाच आचार्य ग्यारह अंगधारी हुऐ । इसके पश्चात देह वर्ष में श्री सुभद्र, श्री यशोभद्र, श्री भद्रवाहु, ...
Kundakunda, Śreyāṃsakumāra Jaina, Ajitakumāra Śāstrī, 1991
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Jaina dharma kā prācīna itihāsa - Volume 2
... काल अधिक जान पड़ता है | एकादश अंगधारी कसाचार्य के दिवंगत हो जाने पर भरतक्षेत्र का कोई भी आचार्यश्यारह अंगधारी नहीं रहा | किन्तु उस काल मेपुरूष परम्परा त्कम से सुभद्रा यशोभद्र, ...
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Prasad Ke Sampoorn Natak Evam Ekanki
... आजानुवाहु, वृषभस्कन्ध, कमनयन, युवा साक्षात् अंगधारी अनंग के तुल्य, विशाल धनुष पास में रखे हुए पुष्ट पर कराल स्वर्णहुंमतबाणों से पूरित तूणीर धारण किए हुए, एक सर्वागसुन्दरी के कर ...
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Katha Satisar - Page 206
अन्तिम अंगधारी लोहार्य (द्वितीया बतलाये गये है जिनको केवल एक आचारांग का ज्ञान था । इसके बाद अंग और पूर्वी के एक देश के ज्ञात. और उस देश के भी अशो के ज्ञाता आचार्य हुए जिनमें ...
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Shree Haricharitramrut Sagar Hindi Part 04: Swaminarayan Book
चोपाई : पुर को विच चले सुखकारी, जस्मिय वान लिये अंग धारी । । सवर्न के धरे भूषण अमारा, सुवर्नमय अश्व बनेउ सारा ।।२९।। का'क के छत्र लिये शिर धारा, शोभा के कोउ रहे न परा । । फूल के पेर लिथेउ ...
Swaminarayan Saint Sadguru Shree Adharanandswami, 2011
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Ācārya Śrī Vīrasāgara smr̥ti grantha
यथा-केवली का काल बासठ वर्ष, श्रुत केवलियों का १०० वर्ष, दश पूर्व धारियों का १८३ वर्ष, ग्यारह अंग धारियों का १ २३ वर्ष, दस नव व आठ अंगधारी का मैं ल वर्ष ऐसे ६ २ "म : ० ० है १ ८३ । १२ ३ । मि----- ५६५ ...
Ravīndra Kumāra Jaina, Di. Jaina Triloka Śodha Saṃsthāna, 1990
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Kr̥shṇakathā kī paramparā aura Sūradāsa kā kāvya - Page 64
गौर अंग सुरंग लोचन, प्रलय जिनके ताम । एक कुंडल अन धारी, औत दरस. ग्राम : नील अबर अंग धारी, स्याम पूरन काम । महा जे खल तिनहुँ ते अति, तरल हैं इक नाम : वहा पूरन सकल स्वामी, रहे ब्रज निज धाम ।
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Āgama-yuga kā Jaina-darśana
... ९२;-सूत्ररूप १६२;-युग २८१ आचार-परे, २८१ आचार वस्तु-स-रे: आचारोंग--२१, २५-३१; ६८, ८५, १४२, १६३;४ टि०, २१ टि०, २८२, ३१७;-अंगधारी २३ आजीवक-३०५, ३०६ आज्ञा-प्रधान- २ ८ ३ आतुरप्रत्याख्यान--२६, २८२ आत्म-रि.
Dalsukh Bhai Malvania, Vijaya (Muni.), 1966
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Jainadharma aura paryāvaraṇa
... में निरत रहता है, उपसर्ग निवारण में प्राण देकर भी काम करता है, चुहल को सुचारु ढंग से संचालित नहीं करने उपयुक्त अंगधारी होता है, वादविवाद में नहीं उत्तम करता है, पत्नी के पड़ता है, ...