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कुली उतार आंदोलन ने से मिली थी नई ऊर्जा
अमर उजाला ब्यूरो, बागेश्वर
Updated Mon, 15 Aug 2016 12:13 AM IST
बागेश्वर शहर
- फोटो : अमर उजाला
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स्वतंत्रता संग्राम दिवस आते ही कुली उतार और कुली बेगार आंदोलन की याद भी ताजी हो जाती है। देश की आजादी में इस आंदोलन ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भगवान बागनाथ की नगरी में इस कुप्रथा को उखाड़ फेंकने में मिली सफलता का विवरण देश की आजादी के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है।
अंग्रेजों के काले कानूनों से भारत माता सदियों से त्रस्त थी। इन्हीं में से कुली उतार, बेगार, बर्दायश जैसे कानूनों से समूचे कूर्मांचल केलोग दु:खी थे। इन कानूनों के तहत लोगों को अंग्रेेज हुक्मरानों का बोझा ढोना पड़ता था। नि:शुल्क खाने पीने की व्यवस्था करनी होती थी। खातिरदारी न होने पर अंग्रेेज शासक लोगों को दंडित करते थे। काले कानूनों के भय से बचने के लिए लोग सारे काम काज छोड़कर उनकी सेवा में जुट जाते थे और बोझा ढोने के लिए दूर तक जाना पड़ता था।
लोगों में इन कानूनों के खिलाफ ज्वाला सुलगने लगी। वर्ष 1920 में अल्मोड़ा से पंडित बद्री दत्त पांडे, विक्टर मोहन जोशी, चिरंजी लाल साह आदि महात्मा गांधी द्वारा नागपुर में बुलाए गए कांग्रेस के सम्मेलन में भाग लेने गए। उन्होंने वहां कूर्मांचल में कुली उतार, बेगार, बर्दायश जैसे काले कानूनों से लोगों को हो रही परेशानियों के बारे में विस्तार से बताया। गांधी से कूर्मांचल चलकर आंदोलन की अगुवाई करने की अपील की। गांधी जी ने उनकी बातों को ध्यान से सुना और मुस्करा कर टाल दिया। आजादी के दीवानों ने अल्मोड़ा लौटकर कुली उतार के खिलाफ रणनीति बनाई और उत्तरायणी पर्व के मकर संक्रांति के दिन बागेश्वर में जुलूूस निकालने की योजना बनाई।
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योजना के तहत वह 13 जनवरी 1921 को वह चामी गांव के हरज्यू मंदिर पहुंचे। अंग्रेज अफसर डाईबिल ने उन्हें जुलूस न निकालने की चेतावनी दी। लेकिन उन्होंने उनकी एक न सुनी। जुलूस में नगर के श्याम लाल साह, शिव लाल वर्मा, चंद्र सिंह शाही समेत कई लोग शामिल हो गए। गोरी सरकार का कड़ा पहरा चल रहा था। बड़ी संख्या में पहुंचे क्रांति वीरों ने अंग्रेजों की परवाह किए बिना क्रांतिकारियों ने सरयू बगड़ में सभा की और कुली उतार, बेगार, बर्दायश जैसे काले कानूनों के रजिस्टर पवित्र सरयू में बहा दिए। आजादी के रणबांकुरों के इस बड़े निर्णय से जहां अंग्रेज हुक्मरान भौचक रह गए, वहीं इससे कूर्मांचल में आजादी की लड़ाई की ज्वाला भी तेज हो गई।
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कूर्मांचल में मिली इस सफलता को देख गांधी जी काफी प्रसन्न हुए। उन्होंने कूर्मांचल के लोगों को शाबासी देने के लिए यहां आने का कार्यक्रम तय किया। गांधी 14 जून 1929 को कौसानी पहुंचे। उन्होंने वहां 14 दिन रहकर अखंड शांति योग की भाषा टीका लिखी। उन्होंने कौसानी की सुंदरता से अभिभूत होकर इसे दूसरा स्विट्जरलैंड नाम दिया। गांधी जी 28 जून 1929 को बागेश्वर पहुंचे और उन्होंने ऐतिहासिक नुमाइशखेत में सभा की और कुली उतार, बेगार, बर्दायश जैसे काले कानूनों को उखाड़ फेंकने में मिली सफलता पर क्रांति वीरों की सराहना की।
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