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""अच्छे-अच्छे काम करते जाना" राजा ने कूड़न किसान से कहा था।
कूड़न, बुढ़ान, सरमन और कौंराई थे चार भाई। चारों सुबह जल्दी उठकर अपने खेत पर काम करने जाते। दोपहर को कूड़न की बेटी आती, पोटली में खाना लेकर।
एक दिन घर से खेत जाते समय बेटी को एक नुकीले पत्थर से ठोकर लग गई। उसे बहुत गुस्सा आया। उसने अपनी दरांती से उस पत्थर को उखाड़ने की कोशिश की। पर लो, उसकी दरांती तो पत्थर पर पड़ते ही लोहे से सोने में बदल गई। और फिर बदलती जाती हैं इस लम्बे किस्से की घटनाएं बड़ी तेज़ी से। पत्थर उठाकर लड़की भागी-भागी खेत पर आती है। अपने पिता और चाचाओं को सब कुछ एक सांस में बता देती है। चारों भाइयों की सांस भी अटक जाती है। जल्दी-जल्दी सब घर लौटते हैं। उन्हें मालूम पड़ चुका है कि उनके हाथ में कोई साधारण पत्थर नहीं है, पारस है। वे लोहे की जिस चीज़ को छूते हैं, वह सोना बनकर उनकी आखों में चमक भर देती है।..."(पूरा पढ़ें)
पाँच फूल १९२९ में सरस्वती-प्रेस द्वारा प्रकाशित प्रेमचंद के पाँच कहानियों का संग्रह है। ये पाँच कहानियाँ हैं - कप्तान-साहब, स्तीफ़ा, जिहाद, मंत्र और फ़ातिहा।
"जगतसिंह को स्कूल जाना कुनैन खाने या मछली का तेल पीने से कम अप्रिय न था। वह सैलानी, आवारा, घुमक्कड़ युवक था। कभी अमरूद के बाग़ो की ओर निकल जाता और अमरूदों के साथ माली की गालियाँ बड़े शौक़ से खाता। कभी दरिया की सैर करता और मल्लाहों की डोंगियों में बैठकर उस पार के देहातों में निकल जाता। गालियाँ खाने में उसे मज़ा आता था। गालियाँ खाने का कोई अवसर वह हाथ से न जाने देता। सवार के घोड़े के पीछे ताली बजाना, एक्कों को पीछे से पकड़कर अपनी ओर खींचना, बुड्ढों की चाल की नक़ल करना, उसके मनोरञ्जन के विषय थे। आलसी काम तो नहीं करता ; पर दुर्व्यसनों का दास होता है, और दुर्व्यसन धन के बिना पूरे नहीं होते। जगतसिंह को जब अवसर मिलता घर से रुपये उड़ा लेजाता।..."(पूरा पढ़ें)
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"हम साहित्यकारों में कर्मशक्ति का अभाव है। यह एक कड़वी सचाई है; पर हम उसकी ओर से आँखें नहीं बन्द कर सकते। अभी तक हमने साहित्य का जो आदर्श अपने सामने रखा था, उसके लिए कर्म की आवश्यकता न थी। कर्माभाव ही उसका गुण था; क्योंकि अक्सर कर्म अपने साथ पक्षपात और संकीर्णता को भी लाता है। अगर कोई आदमी धार्मिक होकर अपनी धार्मिकता पर गर्व करे, तो इससे कहीं अच्छा है कि वह धार्मिक न होकर 'खाओ-पिओ मौज करो' का क़ायल हो। ऐसा स्वच्छन्दाचारी तो ईश्वर की दया का अधिकारी हो भी सकता है; पर धार्मिकता का अभिमान रखने वाले के लिए इसकी सम्भावना नहीं।
जो हो, जब तक साहित्य का काम केवल मन-बहलाव का सामान जुटाना, केवल लोरियाँ गा-गाकर सुलाना, केवल आँसू बहाकर जी हलका करना था, तब तक इसके लिए कर्म की आवश्यकता न थी। वह एक दीवाना था जिसका ग़म दूसरे खाते थे; मगर हम साहित्य को केवल मनोरंजन और विलासिता की वस्तु नहीं समझते। हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा, जिसमें उच्च चिन्तन हो, स्वाधीनता का भाव हो, सौन्दर्य का सार हो, सृजन की आत्मा हो, जीवन की सचाइयों का प्रकाश हो,––जो हममें गति और संघर्ष और बेचैनी पैदा करे, सुलाये नहीं; क्योंकि अब और ज़्यादा सोना मृत्यु का लक्षण है।"...(पूरा पढ़ें)
- इस माह शोधित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
- Kabir Granthavali.pdf [९२१ पृष्ठ]
- जायसी ग्रंथावली.djvu [४९८ पृष्ठ]
- रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf [४७१ पृष्ठ]
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (27 जून 1838 — 8 अप्रैल 1894) बंगाली भाषा के प्रख्यात कथाकार, कवि और पत्रकार थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- कपालकुण्डला (1866)
- आनन्दमठ (1882)
- दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग (1914)
- दुर्गेशनन्दिनी द्वितीय भाग (1918)
- इन्दिरा (1916)
- बंकिम निबंधावली (1928)
"नमस्कार दोस्तों! मेरे लिए आपसे मिलना काफी गौरव की बात है। मुझे मालूम नहीं था कि मैं किस चीज से जुड़ने जा रहा था। जब मैं यहाँ आया, तो कार्ल ने मुझे बताया कि आज दोपहर में हमारी एक बैठक है। उन्होंने मुझे कल ही बताया कि हम क्या करने जा रहे हैं, इसलिए मैं यहाँ न्यूमा (NUMA) आया और उनसे पूछा, “क्या तुम ठीक से जान रहे हो कि हम सही जगह पर आए हैं?”..."(पूरा पढ़ें)
- हिंदी साहित्य — कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, निबंध, आत्मकथा, जीवनी, भाषा और व्याकरण, साहित्य का इतिहास
- समाज विज्ञान — दर्शनशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, भूगोल, अर्थशास्त्र, विधि
- विज्ञान — प्राकृतिक विज्ञान, पर्यावरण
- कला — संगीत
- अनुवाद — संस्कृत, तमिल, बंगाली, अंग्रेजी
- विविध — ग्रंथावली, संघ लोक सेवा आयोग प्रश्न पत्र, दिल्ली विश्वविद्यालय प्रश्न पत्र
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- कुल पुस्तकें = ५०३
- कुल पुस्तक पृष्ठ = १,६३,७६९
- प्रमाणित पृष्ठ = १२,५३३, शोधित पृष्ठ = ६८,७२९
- समस्याकारक = ६, अशोधित = ९२,२९८, रिक्त = २,७३६
- सामग्री पृष्ठ = ५,७३३, परापूर्ण पृष्ठ = ४३१७
- स्कैन प्रतिशत = १००%
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