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पाँच फूल १९२९ में सरस्वती-प्रेस द्वारा प्रकाशित प्रेमचंद के पाँच कहानियों का संग्रह है। ये पाँच कहानियाँ हैं - कप्तान-साहब, स्तीफ़ा, जिहाद, ⁠मंत्र और फ़ातिहा।


"जगतसिंह को स्कूल जाना कुनैन खाने या मछली का तेल पीने से कम अप्रिय न था। वह सैलानी, आवारा, घुमक्कड़ युवक था। कभी अमरूद के बाग़ो की ओर निकल जाता और अमरूदों के साथ माली की गालियाँ बड़े शौक़ से खाता। कभी दरिया की सैर करता और मल्लाहों की डोंगियों में बैठकर उस पार के देहातों में निकल जाता। गालियाँ खाने में उसे मज़ा आता था। गालियाँ खाने का कोई अवसर वह हाथ से न जाने देता। सवार के घोड़े के पीछे ताली बजाना, एक्कों को पीछे से पकड़कर अपनी ओर खींचना, बुड्ढों की चाल की नक़ल करना, उसके मनोरञ्जन के विषय थे। आलसी काम तो नहीं करता ; पर दुर्व्यसनों का दास होता है, और दुर्व्यसन धन के बिना पूरे नहीं होते। जगतसिंह को जब अवसर मिलता घर से रुपये उड़ा लेजाता।..."(पूरा पढ़ें)


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कुछ विचार प्रेमचंद के चुने हुए निबन्धों का संग्रह है। इसका प्रकाशन सरस्वती-प्रेस, बनारस द्वारा १९३९ ई॰ में किया गया था।

"हम साहित्यकारों में कर्मशक्ति का अभाव है। यह एक कड़वी सचाई है; पर हम उसकी ओर से आँखें नहीं बन्द कर सकते। अभी तक हमने साहित्य का जो आदर्श अपने सामने रखा था, उसके लिए कर्म की आवश्यकता न थी। कर्माभाव ही उसका गुण था; क्योंकि अक्सर कर्म अपने साथ पक्षपात और संकीर्णता को भी लाता है। अगर कोई आदमी धार्मिक होकर अपनी धार्मिकता पर गर्व करे, तो इससे कहीं अच्छा है कि वह धार्मिक न होकर 'खाओ-पिओ मौज करो' का क़ायल हो। ऐसा स्वच्छन्दाचारी तो ईश्वर की दया का अधिकारी हो भी सकता है; पर धार्मिकता का अभिमान रखने वाले के लिए इसकी सम्भावना नहीं।
जो हो, जब तक साहित्य का काम केवल मन-बहलाव का सामान जुटाना, केवल लोरियाँ गा-गाकर सुलाना, केवल आँसू बहाकर जी हलका करना था, तब तक इसके लिए कर्म की आवश्यकता न थी। वह एक दीवाना था जिसका ग़म दूसरे खाते थे; मगर हम साहित्य को केवल मनोरंजन और विलासिता की वस्तु नहीं समझते। हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा, जिसमें उच्च चिन्तन हो, स्वाधीनता का भाव हो, सौन्दर्य का सार हो, सृजन की आत्मा हो, जीवन की सचाइयों का प्रकाश हो,––जो हममें गति और संघर्ष और बेचैनी पैदा करे, सुलाये नहीं; क्योंकि अब और ज़्यादा सोना मृत्यु का लक्षण है।"...(पूरा पढ़ें)


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  1. Kabir Granthavali.pdf ‎[९२१ पृष्ठ]
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रचनाकार
रचनाकार

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (27 जून 1838 — 8 अप्रैल 1894) बंगाली भाषा के प्रख्यात कथाकार, कवि और पत्रकार थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

आज का पाठ

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सूचना का अधिकार, ज्ञान का अधिकार:डॉ.सैम पित्रोदा की टिप्पणियां कार्ल मालामुद द्वारा रचित पुस्तक कोड स्वराज का एक अध्याय है जिसका प्रकाशन 2018 ई॰ में पब्लिक.रिसोर्स.ओआरजी इनकोरपोरेटेड "कैलिफोर्निया" द्वारा किया गया था।

"नमस्कार दोस्तों! मेरे लिए आपसे मिलना काफी गौरव की बात है। मुझे मालूम नहीं था कि मैं किस चीज से जुड़ने जा रहा था। जब मैं यहाँ आया, तो कार्ल ने मुझे बताया कि आज दोपहर में हमारी एक बैठक है। उन्होंने मुझे कल ही बताया कि हम क्या करने जा रहे हैं, इसलिए मैं यहाँ न्यूमा (NUMA) आया और उनसे पूछा, “क्या तुम ठीक से जान रहे हो कि हम सही जगह पर आए हैं?”..."(पूरा पढ़ें)

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