हिन्दी किताबें जो «छोनि» से संबंधित हैं
निम्नलिखित ग्रंथसूची चयनों में
छोनि का उपयोग पता करें।
छोनि aसे संबंधित किताबें और हिन्दी साहित्य में उसके उपयोग का संदर्भ प्रदान करने वाले उनके संक्षिप्त सार।.
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Kam Ki Batain - Page 92
सहवास के ममय लिग और छोनि के चीज आपसी ममके अचल को मके और विराट को अनुभूति बेहतर को । ; "य छोनि में तीत्नायन आने का करण ए बयाशोताहै7इभसेकेसेबचाषा सकता है 7 ऐसा जाव के बद हो पकता ...
Dr. Prakash Kothari,
2009
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Vaivahik Jeewan - Page 145
ये तीन सिद्धान्त इस प्रकार हैं : (1) बीबीखलन होते ही छोनि को सावधानी ते शिशिर उसमें की का अकाश भी न रहने देना, (3) सम्भोग के पूर्व ही छोनि में दु-नाशक पदार्थ रखकर चीर्य के पुचीलों ...
अपुरुष की गुदा में प्रवेश करनेवाले पुरुष ल-पट और व्यभिचारी होते हैं । स्वी की गुश का इस रूप में प्रयोग करनेवाले पुरुष सामान्यतया क्षीण रोनेचप्रअंशिले होते हैं जो छोनि में संभोग ...
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Jñāna aura karma: Īśāvāsya-anuvacana
सके यह कर्म छोनि भी है इसलिए यक सीमा तक हम प्रारब्ध के अधीर होते हुए भी यक भीमा तक स्वतंत्र है । स्वर्ग में जने व/ले त्गेग भी परतंत्र ही है । स्वरों वया-' एक तरह का पाम मर होटल है । जितना ...
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Dravya ki avadhāraṇā - Page 176
जैसे जीवित गाय के शरीर में जूमि मैदा होते हैं है वह मचित्त छोनि है । प्रबल दि-- निर्जल (बब जैसे देव और नायकों को छोनि अजित गोदने है । सचित्र सब अति तो सजीव-ई नि-जीव, जैसे गयज मनुष्य ...
Yogashema Prabhā (Sādhvī),
2005
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Vishṇukānta Śāstrī amr̥ta mahotsava, abhinandana grantha ...
सब वनों कहते है तो इसलिए कहते है कि तिराभी लाख निन्यानवे हजार भी भी निन्यानवे योनियों भोग गोनियों हैं । केवल मनुष्य छोनि कर्म शेव और भोग योनि दोनों हैं । इस वात का मतलब यशा ।
Vishṇukānta Śāstrī, Premaśaṅkara Tripāṭhī, Jugala Kiśora Jaithaliyā,
2004
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Atharvavedīya darśana - Page 130
भूत व्यक्ति वह यह अमर औवामा मरणाय शरीर के साथ समान छोनि में जन्म लेकर अपनी धारक शक्तियों से चलता है (368 अपनी धारण-शक्ति से सक्त होकर यह असम, नीचे, तिरछे अर्थात् सब और जाता है ...
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Jaiminīyopanishad Brāhmaṇa: eka samīkshā
औवात्मा जी कर्म करता है उनके परिणाम में वह तीक त्ग्रेकान्तरों में एक छोनि ज अन्य जाने में प्रवेश करता को ऋग्वेद के अनुसार परमात्मा प्रवर उक्ति को जायं एक देह से अन्य देह में ले ...
निराकार, निविधिर, व्यापक पत् या पुरुयताव का प्रतीक ही लिह है और अनन्तबहमछोत्पादिनी महाशक्ति प्रकृति ही छोनि, अध, या जले है । न केवल पुरुष से सृष्टि हो सकती है, न केवल प्रकृति शे।
Vaśishṭha Nārāyaṇa Tripāṭhī,
1999
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Muria Aur Unka Ghotul (Vol-2) - Page 87
इसमें छोनि का मय भाग स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है । खास बात यह है (के इसमें स्वी-गोनि के दो म१य भाग हैं और एक म९य माग उत्ता भी है । मारप्रावेरा में ले-योनि की इसी तल की नयकाली, माय माग ...